दिल्ली में हर सर्दी के साथ वायु प्रदूषण एक गंभीर संकट बनकर सामने आता है। इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। एयर क्वालिटी इंडेक्स कई इलाकों में खतरनाक स्तर को पार कर चुका है, जिससे आम लोगों की सेहत पर सीधा असर पड़ रहा है। सांस की बीमारियां, आंखों में जलन, बच्चों और बुजुर्गों की परेशानी लगातार बढ़ रही है। इसी बीच चीन ने दिल्ली की बिगड़ती हवा को लेकर एक अहम पहल की है।
भारत में स्थित चीनी दूतावास ने सार्वजनिक रूप से एक स्टेप बाय स्टेप गाइड साझा की है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह चीन ने बीजिंग जैसे बड़े शहरों में वायु प्रदूषण को काबू में किया। यह गाइड ऐसे समय पर आई है, जब दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर बहस तेज है और ठोस समाधान की तलाश जारी है।
क्यों अहम है चीन का सुझाव
एक समय था जब बीजिंग भी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था। घना स्मॉग, कम विजिबिलिटी और स्वास्थ्य संकट वहां आम बात थी। लेकिन पिछले एक दशक में चीन ने सख्त नीतियों, तकनीकी बदलावों और प्रशासनिक सख्ती के जरिए हालात में सुधार किया। इसी अनुभव के आधार पर चीन ने भारत के साथ अपने उपाय साझा किए हैं।
चीनी दूतावास की ओर से कहा गया है कि भारत और चीन दोनों तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण से गुजर चुके हैं। ऐसे में पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां भी काफी हद तक समान हैं। हालांकि हर देश की परिस्थितियां अलग हैं, फिर भी कुछ नीतिगत सबक अपनाए जा सकते हैं।
चीन की स्टेप बाय स्टेप गाइड में क्या है खास
चीन की ओर से साझा की गई गाइड में कई ऐसे बिंदु शामिल हैं, जिन पर बीजिंग में लंबे समय तक काम किया गया। इसमें किसी एक कदम पर नहीं, बल्कि एक समग्र रणनीति पर जोर दिया गया है।
सबसे पहले बात की गई है वाहनों से होने वाले प्रदूषण की। चीन ने पुराने और ज्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटाया। इसके साथ ही कड़े उत्सर्जन मानक लागू किए गए, जो यूरो 6 जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के थे। निजी वाहनों की संख्या नियंत्रित करने के लिए कुछ शहरों में नंबर प्लेट सिस्टम और सीमित ड्राइविंग नियम भी लागू किए गए।
दूसरा अहम बिंदु सार्वजनिक परिवहन का विस्तार रहा। बीजिंग में मेट्रो नेटवर्क को तेजी से बढ़ाया गया और बस सेवाओं को ज्यादा सुलभ बनाया गया। इलेक्ट्रिक बसों और इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा दिया गया ताकि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो। इसका सीधा असर ट्रैफिक और प्रदूषण दोनों पर पड़ा।
औद्योगिक प्रदूषण पर सख्ती
चीन की गाइड में औद्योगिक प्रदूषण को लेकर भी स्पष्ट रणनीति बताई गई है। भारी और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को शहरों से बाहर शिफ्ट किया गया या उन्हें बंद किया गया। कई फैक्ट्रियों को क्लीन एनर्जी पर स्विच करने के लिए मजबूर किया गया। नियमों का पालन न करने वालों पर भारी जुर्माने लगाए गए, जिससे उद्योगों में अनुशासन आया।
इसके अलावा निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल को भी एक बड़ी वजह माना गया। इसके लिए कंस्ट्रक्शन साइट्स पर कवरिंग, पानी का छिड़काव और तय समय में काम पूरा करने जैसे नियम लागू किए गए।
क्षेत्रीय सहयोग पर जोर
चीन ने यह भी माना कि प्रदूषण किसी एक शहर की समस्या नहीं होती। बीजिंग के आसपास के इलाकों जैसे हेबेई और तियानजिन के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई की गई। जब पूरे क्षेत्र में एक साथ कदम उठाए गए, तभी प्रदूषण में स्थायी कमी देखने को मिली। यही मॉडल दिल्ली और एनसीआर के लिए भी अहम माना जा रहा है।
दिल्ली में लागू करना कितना आसान
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि बीजिंग मॉडल को ज्यों का त्यों दिल्ली में लागू करना आसान नहीं होगा। भारत की प्रशासनिक संरचना, जनसंख्या घनत्व और सामाजिक हालात चीन से अलग हैं। दिल्ली में पहले से ग्रैप जैसे प्लान मौजूद हैं, बीएस-6 ईंधन भी लागू हो चुका है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती नियमों का सख्त पालन और राज्यों के बीच समन्वय की है।
फिर भी चीन की गाइड यह दिखाती है कि अगर लंबे समय तक राजनीतिक इच्छाशक्ति, सख्त फैसले और तकनीकी निवेश किया जाए, तो हालात बदले जा सकते हैं।
सेहत और भविष्य की चिंता
डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली की हवा अब सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य आपात स्थिति बनती जा रही है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से सीख लेना गलत नहीं है। चीन की यह पहल एक संकेत है कि प्रदूषण जैसे मुद्दे पर वैश्विक सहयोग जरूरी है।
अब देखना यह होगा कि क्या नीति स्तर पर इन सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाता है या यह गाइड सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रह जाती है। लेकिन इतना साफ है कि दिल्ली को अगर अपनी हवा साफ करनी है, तो छोटे नहीं बल्कि बड़े और लगातार कदम उठाने होंगे।
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